बातचीत / 'उरी' में फ्लाइट लेफ्टिनेंट सीरत कौर बनीं कीर्ति कुल्हारी बोलीं, गणतंत्र ने हमें असली आजादी दी तभी तो आज विरोध कर पाते हैं

बॉलीवुड डेस्क. कीर्ति कुल्हारी ने ‘पिंक’, ‘शैतान’, ‘इंदू सरकार’, ‘उरी: द सर्जिकल स्ट्राइक’ और ‘मिशन मंगल’ जैसी फिल्मों में सपोर्टिंग लेकिन दमदार रोल से अपनी अलग पहचान बनाई है। ‘उरी’ में फ्लाइट लेफ्टिनेंट सीरत कौर में कीर्ति की भूमिका यादगार रही। कीर्ति इन दिनों अपनी अपकमिंग फिल्मों  ‘गर्ल ऑन द ट्रेन, ‘बताशा’ के अलावा वेबसीरीज ‘फोर मोर शॉर्ट्स प्लीजसीजन 2 सहित कई अन्य प्रोजेक्ट्स में बिजी हैं। कीर्ति के पिता नौसेना में रहे हैं और उनकी बहन सेना में डॉक्टर हैं, इसीलिए देश से जुड़े मुद्दों पर वह खुलकर अपनी बात रखती हैं। 71वें गणतंत्र दिवस के मौके पर दैनिक भास्कर से खास बातचीत की।


बकौल कीर्ति‘मैंने ‘उरी’ और ‘मिशन मंगल’ फिल्में केवल इसलिए नहीं चुनी थीं कि उनमें देशभक्ति दिखाई जाएगी या नहीं, एक आर्टिस्ट के तौर पर मुझे यह किरदार प्रभावी लगे।  इन दोनों ही फिल्मों की स्क्रिप्ट देशभक्ति से भरी थी, उनमें अचीवमेंट्स की कहानी कही गई। दोनों में कहानी और इमोशन्स अलग थे, लेकिन संदेश एक ही था कि जो चाहते हो, उसके लिए दृढ़ता से खड़े रहो, साथ ही इन फिल्मों से पहले एक आम दर्शक  सर्जिकल स्ट्राइक और मार्स ऑर्बिटर मिशन के बारे में बहुत कुछ जानता नहीं था। मैं खुश हूं कि इन फिल्मों ने आम लोगों को ये जानकारी देकर सिनेमा से जोड़ने का काम किया। फिल्में समाज पर गहरा प्रभाव डालती हैं और मुझे खुशी होती है कि इन दोनों ही फिल्मों ने एक नागरिक के तौर पर हम सबको जोड़ने का काम किया है। इन फिल्मों की कहानी से यही संदेश मिलता कि हम जब एक साथ खड़े होकर, बिना किसी भेदभाव के कोई काम करते हैं तो देश को आगे ले जाते हैं। एकता में ही शक्ति है।’  


मेरी नजर में हमारे देश का गणतंत्र


मेरे लिए गणतंत्र दिवस के मायने ये हैं कि इस दिन हमारा संविधान बना था। देश के लिए एकसमान नियमों और कानून की रूप-रेखा तय की गई थी। सबके लिए समानता का अधिकार, न्याय का अधिकार लोगों को संविधान से ही मिले हैं। लेकिन, इसके साथ इतना और कहना चाहूंगी कि जबसे हमारा संविधान बना है तब से इसमें कोई बड़े बदलाव नहीं हुए हैं। कई बातें 60-70 साल पहले लागू की गई थीं वो अब मौजूदा दौर के हिसाब से कई मामलों में वाजिब नहीं लगतीं इसलिए मुझे लगता है कि संविधान में नए बदलावों के हिसाब से संशोधन होने ही चाहिए।’ 


26 जनवरी से जुड़ी बचपन की यादें


‘मुझे अच्छी तरह से याद है कि 26 जनवरी और 15 अगस्त पर मेरी मम्मी की छुट्टी होती थी और हमें स्कूल भेजने की जिम्मेदारी पापा की होती थी। उस दिन हमें 7: 30 बजे स्कूल पहुंचना होता था तो पापा हमें तैयार करते थे। वो कुकिंग में ज्यादा अच्छे तो नहीं थे लेकिन हमें नाश्ते में ब्रेड और सेवैयां की खीर खिलाते थे, फिर स्कूल में झंडा वंदन, देशभक्ति से जुड़े गाने, डांस परफॉरमेंस होते थे। मैं डिफेंस परिवार से हूं, पिता नेवी में थे और बहन आर्मी में है, इसलिए बचपन से ही हमने जो माहौल देखा है वो बहुत अलग था, आज भी मैं उस माहौल को बहुत मिस करती हूं। 


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